कविता: "नया सवेरा चाहिए"

         कविता: "नया सवेरा चाहिए"

सपनों की घाटी, फूलों की वादी,

जहाँ बहती है चिनारों की नदियाँ प्यारी।

कश्मीर था हँसता, हर दिल को भाता,

पर फिर भी क्यों आतंक वहाँ मातम लाता?


घूमने आए थे जो, बस खुशियाँ लेने,

वो मासूम थे, ना थे किसी से रंज-ओ-गिले।

पर बारूद के सौदागर फिर से आए,

निर्दोषों की साँसें बेवजह छीन ले जाए।

कौन हैं ये जो इंसानियत को रुलाते?

किस मज़हब में मासूमों को मारना सिखाते?

धरती की जन्नत को नर्क बना डाला,

हमें चाहिए अब न्याय का उजाला।


भारत की धरती शांति की मिसाल है,

पर सहनशक्ति अब आखिरी सवाल है।

हर आँसू का हिसाब होगा अब,

हर शहीद की चिता से निकलेगा सबक।


आतंक को अब जड़ से मिटाना होगा,

हमें एक नया संदेश जग में पहुँचाना होगा।

"ना खून, ना हथियार, बस प्यार हो",

हर दिल से यही पुकार हो।


न्याय मिले उन सबको जो चले गए चुपचाप,

और जले वो आग जो बुझा दे आतंक का ताप।

अब वक़्त है नया सवेरा लाने का,

कश्मीर को फिर से गुलशन बनाने का।

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