एक अधूरी सुबह की पूरी दास्तां – स्कूल बैग और सपने
कहानी – एक अधूरी सुबह की पूरी दास्तां
हर सुबह एक सी लगती है—सूरज उगता है, पंछी चहचहाते हैं, और ज़िन्दगी अपनी रफ्तार पकड़ लेती है। मगर उस सुबह कुछ अलग था।
किरणें कमरे में आईं, मगर रौशनी नहीं थी। हवा चली, मगर राहत नहीं दी।
अमन, जो हमेशा वक्त से पहले उठता था, आज खामोश चारपाई पर पड़ा था। चाय की केतली बिना सीटी दिए ठंडी हो चुकी थी। उसकी मां, शांता देवी, ने कई बार आवाज़ लगाई, मगर कोई जवाब नहीं आया।
अमन की उम्र भले ही 25 थी, लेकिन उसके कंधों पर जिम्मेदारियों का भार 50 साल के आदमी से कम न था। पिता की मौत के बाद उसने घर चलाने के लिए पढ़ाई छोड़ दी थी और शहर के कारखाने में काम शुरू किया था। हर महीने की तनख्वाह सीधी मां के हाथ में जाती थी, और वह मुस्कुरा कर कहता था, "अभी वक्त नहीं है उड़ने का मां, लेकिन एक दिन पंख ज़रूर फैलाऊंगा।"
पर वो सुबह जब अमन नहीं उठा, तो मां का दिल कांप उठा। दरवाज़ा खोला, तो देखा—अमन वहीं था, मगर उसकी आँखें सपनों से खाली थीं। डॉक्टर आया, पड़ोसी जुटे, और खबर फैली कि अमन को हार्ट अटैक आया है।
शहर भर में जिसने भी सुना, यही कहा—इतनी कम उम्र में?
लेकिन शायद कोई नहीं जानता था कि कुछ लोग उम्र से नहीं, जिम्मेदारियों से थकते हैं।
तीन दिन बाद अमन की मां ने उसकी पुरानी डायरी निकाली। उसमें एक पन्ना खुला—जिसमें लिखा था:
"कभी-कभी लगता है कि मैं जी नहीं रहा, सिर्फ निभा रहा हूं। क्या मेरी भी एक कहानी होगी जो लोग पढ़ेंगे?"
आज, यही पंक्तियां एक कहानी बन गई हैं। एक मां के आंसुओं में, एक दोस्त की यादों में, और एक समाज के सवालों में।
सीख:
हर इंसान की ज़िन्दगी एक कहानी है, लेकिन जरूरी नहीं कि हर कहानी सुनी जाए। अगर हम वक़्त रहते एक-दूसरे को समझने लगें, तो शायद कई कहानियां अधूरी न रहें।
स्कूल बैग और सपने
🌞 परिचय:
हम अक्सर कहते हैं कि शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है, लेकिन क्या हर बच्चे को यह अधिकार सही मायने में मिलता है? ये कहानी है एक छोटे से गाँव के एक बड़े सपने देखने वाले बच्चे सूरज की, जो बिना चप्पलों के स्कूल जाता था, लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान ने पूरे गाँव को बदल दिया।
👣 बिना चप्पलों के रास्ता:
राजस्थान के एक छोटे से गाँव बांधावगढ़ में रहने वाला आठ साल का सूरज, रोज़ सुबह अपने छोटे से घर से स्कूल के लिए निकलता था। उसके पास न चप्पल थी, न किताबों से भरा बैग। वह एक पुरानी कॉपी को हाथ में दबाए, धूल भरी पगडंडियों पर नंगे पैर चलता था। अक्सर रास्ते में उसके पैरों में कांटे चुभ जाते, लेकिन उसकी आँखों में कभी शिकवा नहीं दिखा।
उसके चेहरे पर सिर्फ एक सपना था — पढ़-लिखकर कुछ बनने का।
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