Operation Sindoor Poem



 लहू में रंग था भारत का, सीने में आग थी,

हर सैनिक की आँखों में मातृभूमि की प्यास थी।
सरहद के उस पार छुपे थे जो,
जवाब उन्हें देना अब खास था।

ऑपरेशन सिंदूर बना प्रतीक शौर्य का,
जहाँ हर कदम था रणभूमि का दृश्य, गौरव का।
ना डर, ना संशय, बस एक ही नारा,
“देश से बड़ा ना कोई धर्म, ना कोई सहारा।”

सिंधूर था वो माँग में हर वीर पत्नी के,
जो इंतज़ार करती रही चुपचाप प्रार्थनाओं में।
हर गोली, हर कदम, हर साँस में एक ही बात,
"जिएँगे तो तिरंगे के लिए, मरेंगे तो उसी के साथ।"

घाटियों में गूंजे जयकारों के स्वर,
दुश्मन काँप उठे, जब उठी रण की लहर।
भारत के सपूतों ने दिखा दिया फिर से,
कि शांति की भाषा भी तलवारों से सजी है।

ये केवल युद्ध नहीं था, ये था सम्मान का संग्राम,
जहाँ शौर्य, बलिदान और सच्चाई थे प्रधान।
ऑपरेशन सिंदूर में लिखा गया इतिहास,
जिसे सुनकर गर्व से भर जाए हर भारतवासी का श्वास।





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